-बी.एल. गौड़
श्री बाला साहिब ठाकरे के akhbaar का नाम है सामना, जिसके वे सवेसवाZ हैं। मुख्य-संपादक, संपादक, मालिक, प्रकाशक यानि की सब कुछ। इसके चलते उन्हें पूरा अधिकार है कि वे इसमें कुछ भी लिख सकते हैं, छाप सकते हैं, वितरित कर सकते हैं-जिसे मुम्बइZ के नागरिक पढ़ते हैं। अगर नहीं पढ़ते तो पढ़वाये जाते हैं।मुम्बइZ निवासियों को पता है कि सामना का आमना करने के लिए किसी में भी ताकत नहीं है। ठाकरे जी के सामने बड़ी हस्तियाँ तो क्या सरकारें भी नतमस्तक रहती हैं। यदि इतिहास पलट कर देखें तो बाला साहिब ने जैसी भी चाही टिप्पणी की, सरकार के विरुद्ध कोइZ भी ब्यान दिया या उनके कायZकताZओं ने कुछ भी किया, चाहे वह रेलवे बोडZ की परीक्षा के केन्द्र का तहस-नहस करना हो या मुम्बइZ से बाहर के अभ्याथिZयों की पिटाइZ या इसी तरह की अन्य गतिविधियाँ। लेकिन कोइZ भी सरकार उनके सामने का आमना नहीं कर पाइZ। एक तरह से कहा जाये तो वे इस क्षेत्र में अजेय बने रहे। और ऐसा होता है, ऐसा ही कुछ जब भी हुआ था जब लालू जी बिहार के मुख्यमंत्राी थे। किसी भी कार के शोरूम को तोड़कर जबरन गाड़ियाँ निकलवा सकते थे और शराफत के तकाजे के तहत इस्तेमाल करने के बाद उन्हें वापस शोरूम के दरवाजे पर छुड़वा सकते थे।अब बाला साहिब ने सामना में लिखकर देश के महानतम् क्रकिेटर को नसीहत के साथ-साथ धमका भी दिया कि ख्+ाबरदार अगर तुमने अपने आपको भारत का नागरिक बताया। पहले कहो कि मैं महाराष्ट्रीयन हूँ और केवल मुम्बइZ का हूँ। हाँ अगर पूछताछ में कोइZ परेशान करने लगे जैसा कि विदेशों में एयरपोटZ पर होता है, वे लोग बार-बार पूछते रहते हैं कन्ट्री? कन्ट्री? आप जब तक कन्ट्री नहीं बतायेंगे तब तक वे आपको न तो अपने देश में घुसने देंगे और न ही अपने देश के एयरपोटZ से उड़ान भरने देंगे। शायद वे बेवकूफी करते हैं, उनका काम चल जाना चाहिए केवल यह कह देने से कि मैं महाराष्ट्रीयन हूँ, बिहारी हूँ, कशमीरी हूँ, हिमाचली हूँ लेकिन नहीं, कहना ही पड़ता है कि मैं भारतीय हूँ।कितनी विवशता बन आती है भारतीय कहने के लिए। बस प्रयि सचिन की यही बात तो बाला साहिब को नागवार गुजरी। उन्हें हरगिज हरगिज नहीं कहना चाहिए था कि मुम्बइZ सब की है, कहना चाहिए था कि मैं सचिन तैंदुलकर, बाला साहिब ठाकरे जी की मुम्बइZ का निवासी हूँ, उनकी रियाया हूँ और भारतीय तो मैं बहुत बाद में हूँ।अब क्या हो? कौन करेगा सामना का आमना? जहाँ पुलिस, प्रशासन, सरकारें फेल हैं, वहाँ बस एक ही तंत्र बचता है और वह है प्रजा का तंत्र। जिसने अपने जलवे की झलक बाला साहिब को विधान सभा में दिखा भी दी है। मराठी मानुष का गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्र में भी बाला साहिब के प्रत्याशी को हार का मुँह देखना पड़ा। बस यही एक तंत्र बचा है, जो बाला साहिब ठाकरे के डर से मुम्बइZ और महाराष्ट्र के निवासियों को निजात दिला सकता है। यदि उनके मन में यह बात, यह विचार बैठ जाये कि वे सब पहले तो भारतवासी हैं, भारत माता के लाल हैं और तत्पश्चात् महाराष्ट्रीयन हैं तो सम्भव है कि वे एक डर के साये से बाहर आकर चैन की साँस ले सकें।याद दिला दे कि वीर सावरकर जैसे वीर महाराष्ट्रीयन जरूर थे पर उन्होंने कालापानी की जेलों में कोल्हू में जुतकर जो तेल निकाला था, वह केवल मुम्बइZ को आजाद कराने के लिये नहीं था बल्कि समस्त भारत का स्वतंत्र कराने के लिए था। यदि उन्होंने यह सब केवल मुम्बइZ के लिये ही किया होता तो हर भारतवासी का सिर श्रद्धा से उनके लिये नहीं झुकता।बाला साहिब जी! जरा सोचिये और कृपा कीजिए हम सब देशवासियों पर। हम सब भारतीयों को मुम्बइZ बहुत प्यारी है, महाराष्ट्र बहुत प्यारा है, आप बहुत प्यारे हैं बशते± की आप केवल क्षेत्रवाद का अलाप छोड़ दें, और अपना दृष्टिकोण बड़ा कर लें। हम आपके शतायू होने की कामना रखते हैं।

7 टिप्पणियाँ:

badhiya likha dost..

भाई अपने मुल्क में ये नही चलेगा जैसा की हो रहा गलत बात.........

अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉग जगत में स्वागत।

हर हिन्दुस्तानी की यही पुकार है ...!!

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

सर ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, आपने बहुत अच्छा लिखा, इससे पड़कर यक़ीनन ठाकरे साहब को एक बार सोचना तो पड़ेगा....... सर हम उम्मीद करते हैं की भविष्य में इसी तरह आपके द्वारा लिखे लेख पड़ने को मिले,

---- चुटकी----

राहुल थके
प्रियंका ने
चलाई कार,
अब तो
यह भी है
टीवी लायक
समाचार।

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हमराही