निरंतर
धधकते हुए प्रश्न
द्वार पर देते हैं दस्तक
ये परिस्थितयां - ये मजबूरियां
आख़िर कब तक


यह आंकडें पर दोड़ती प्रगति
आँखों में झोंकी जा रही धूल
उन्नति के साथ अवनति
कहीं सदगति-कहीं दुर्गति
कहीं आवश्यकता से अधिक सतर्कता
निरपेक्षता की आड़ में पेक्षता
कहीं महकते लाल गुलाब
तो कहीं भूख की झाड़ियों पर मुरझाते फूल
ऐसी विसंगतियां
आख़िर कब तक

बादल आये - वर्षा आई
वर्षा आई - बाढ़ लाई
बाढ़ लाई - पानी -पानी
पानी- पानी- त्राहि -त्राहि
व्यवस्था -तार -तार
प्रशासन -शर्मसार

पानी पर बहते सामन
धोती- जनानी - मर्दानी
कमीजें -छोटी -बड़ी -फटी-पुरानी
लोग -जिन्दा - मुर्दा
छप्पर -काठ -कबाड़ -दूकान
बाढ़ की क्रोधित आवाज
और ऊपर उड़ता हवाई जहाज
करता हुआ सर्वेक्षण
कल तक आएगा
टी.वी. पर भाषण
"जो डूबने से बचें हैं
परेशान न हों
कल तक रसद पहुंचेगी
और जो कल तक जीवित बचेंगें
उनमें बराबर बटेगी"

यह आपदा नई नहीं है
और न ही ऐसे दृश्य
यह इतिहास
हर वर्ष दोहराया जाता है
और किसी कदीमी त्यौहार की तरह
हर वर्ष मनाया जाता है
सरकार भी क्या करे
उसकी भी अपनी मजबूरियां
न जाने कब तक ?

ये परिस्थितयां - ये मजबूरियां
आख़िर कब तक

1 टिप्पणियाँ:

बहुत अच्छा लिखा है सर, बाढ़ की भयाभाता को जीवंत कर दिया है आपने....धन्यवाद्

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हमराही