काश कभी लौटे वह संध्या

काश कभी लौटे वह बचपन
लौटें आँख मिचौली के दिन
काश कभी लौटे वह यौवन
लौटें रुन्ठा-रून्ठी के दिन

कापी में से प्रष्ट फाड़कर
काश बने छोटी सी कश्ती

2 टिप्पणियाँ:

bahut khub likha hai.

Bahut Barhia...bachpan mein le jaane ke liye dhanyawad...

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हमराही