ताजा ख़बरें पढता हूँ

सुबह सवेरे सबसे पहले
ताजा ख़बरें पढता हूँ

हैं कितनों ने अपराध किए
हैं किसने कैसे पाप किए
अब तक कितने अपहरण हुए
कितनों के चीर हरण हुए
झुग्गियां कितनी जली मिलीं
कितनी लावारिस लाश मिलीं
कुछ मांग न पूरी होने पर
कितनी दुल्हन अधजली मिलीं
ये विचलित करते समाचार
कर जाते मन को तार तार
में आगे पीछे कर चश्मा
इस दिल को थामे पढता हूँ

अनगिन क़त्ल कर चुका कैदी
पुलिश गिरफ्त से भाग गया
गहरी नींद गवा सोया था
सदान सदान को जाग गया
घरवाले उसको समझाते
तू छोड़ गवाही का चक्कर
इस अंधी न्यायव्यवस्था में
तू झेल न पायेगा टक्कर
जा न्यायधीश के सम्मुख तू
क्या सब कुछ सच कह पायेगा ?
मुझको तो ऐसा लगता है
तू जिंदा लौट न पायेगा
ऐसी ख़बरें पेज तीन पर
ले चटकारे पढता

अब सुन कर करना तुम विचार
पहले पन्ने के समाचार
अधिकाँश घोषणाएं झूंटी
कर जातीं मन को तार तार
तुम पाँच बरस हमको देदो
हम दूर गरीबी कर देंगे
नहीं भूख से कोई मरेगा
हम सबको रोटी देंगें
पिछले पाँच दशक से हमने
प्रस्तावों पर गौर किया है
झोपड़पट्टी दूर बसाकर
नगरों का विस्तार किया है
नेता कभी न मरते देखा
ये है लोकतंत्र का लेखा
यदि गीता का कथन सत्य तो
उसको वस्त्र बदलते देखा
दर्शन की ऐसी गूढ़ ख़बर
में प्रष्ट पाँच पर पढता हूँ










निरंतर
धधकते हुए प्रश्न
द्वार पर देते हैं दस्तक
ये परिस्थितयां - ये मजबूरियां
आख़िर कब तक


यह आंकडें पर दोड़ती प्रगति
आँखों में झोंकी जा रही धूल
उन्नति के साथ अवनति
कहीं सदगति-कहीं दुर्गति
कहीं आवश्यकता से अधिक सतर्कता
निरपेक्षता की आड़ में पेक्षता
कहीं महकते लाल गुलाब
तो कहीं भूख की झाड़ियों पर मुरझाते फूल
ऐसी विसंगतियां
आख़िर कब तक

बादल आये - वर्षा आई
वर्षा आई - बाढ़ लाई
बाढ़ लाई - पानी -पानी
पानी- पानी- त्राहि -त्राहि
व्यवस्था -तार -तार
प्रशासन -शर्मसार

पानी पर बहते सामन
धोती- जनानी - मर्दानी
कमीजें -छोटी -बड़ी -फटी-पुरानी
लोग -जिन्दा - मुर्दा
छप्पर -काठ -कबाड़ -दूकान
बाढ़ की क्रोधित आवाज
और ऊपर उड़ता हवाई जहाज
करता हुआ सर्वेक्षण
कल तक आएगा
टी.वी. पर भाषण
"जो डूबने से बचें हैं
परेशान न हों
कल तक रसद पहुंचेगी
और जो कल तक जीवित बचेंगें
उनमें बराबर बटेगी"

यह आपदा नई नहीं है
और न ही ऐसे दृश्य
यह इतिहास
हर वर्ष दोहराया जाता है
और किसी कदीमी त्यौहार की तरह
हर वर्ष मनाया जाता है
सरकार भी क्या करे
उसकी भी अपनी मजबूरियां
न जाने कब तक ?

ये परिस्थितयां - ये मजबूरियां
आख़िर कब तक

काश कभी लौटे वह संध्या

काश कभी लौटे वह बचपन
लौटें आँख मिचौली के दिन
काश कभी लौटे वह यौवन
लौटें रुन्ठा-रून्ठी के दिन

कापी में से प्रष्ट फाड़कर
काश बने छोटी सी कश्ती

चुप रहकर

बहुत कुछ कह दिया तुमने
चुप रह कर
मैंने भी
सुन लिया बहुत कुछ
वह भी
जो तुमने नहीं कहा
चुप रह कर

वह बरसों की प्रतीक्षा
शांत नहीं थी
बह रही थी
बनकर एक नदी
कहती हुई व्यथा कथा
चुप रह कर

हम स्वयं को
व्यक्त करें भी तो कैसे
व्यक्त कराने का प्रयास करते ही
फूट पड़ती हैं रश्मियों सी
स्मर्तियाँ -विस्मार्तियाँ
लगता है हाथ अन्धेरा
प्रकाश के स्थान पर


प्रशन पर प्रशन
उत्तर नदारद
मानसपटल पर
चलता है अनवरत
एक धारावाहिक
प्रखर संवादों का
"उसने यह कहा
तो मैंने यह कहा
जब नहीं माना उसने
मेरा कहा
तो कर दिया मैंने भी अनसुना
उसका कहा
चुप रहकर

पाहन बहुत तराशे हैं

दूर दूर तक सहरा में
हमने ताल तलाशे हैं
इक सूरत अमर बनाने को
पाहन बहुत तराशे हैं l

जब मूरत बन तैयार हुई
तब सोलह सिंगार हुए
काजल बिंदी पाँव महावर
लहंगा चूनर हार हिये
हमको ऐसा लगा की हम तो
कई जनम के प्यासे हैं l

कितनी भी सुघड़ गड़े कोई
पर ,मूरत बोल नहीं पाती
लाख जतन करले कोई
न प्राण प्रतिष्ठा हो पाती
क्यों लगता चोपड के फड पर
हम हुए पराजित पासे हैं l

जन्म जन्म की बात करें तो
पिछले जनम नदारद हैं
कैसे अच्छी ख़बर मिले ,अब
कहाँ सतयुगी नारद हैं
अब कैसे मिले खुशी कोई
हम तो जनम उदासे हैं l

बी एल गौड़

नरम हथेली
चलने को तो चला रात भर
चाँद हमारे संग
हुई भोर तो हमने पाया
उड़ा चाँद का रंग

सपनों ने भी खूब निभाई
यारी बहुत पुरानी
कई बार फिर से दोहराई
बीती प्रेम कहानी
लगा स्वपन में धरी किसी ने
माथे नरम हथेली
छूट गई सपनों की दुनिया
नींद हो गई भंग

पूरब का आकाश सज रहा
पश्चिम करे मलाल
जलचर वनचर दरखत पर्वत
सबने माला गुलाल
हर प्राणी उठ खडा हो गया
छोड़ रात के रंग
सूरज सजकर चला काम पर
ले अशवों को संग

भरी दोपहरी हमने काटी
किसी पेड़ की छाँव
रहे देखते हम पगडण्डी
जाती अपने गाँव
ढली दोपहरी कदम बढाए
चले गाँव की और
धूल उडाती गईयाँ लौटीं
चढ़ा सांझ का रंग

धीरे से दिनमान छिप गया
चूमधरा का भाल
हम भी अपने घर जा पहुंचे
आँगन हुआ निहाल
देखे पाँव रचे महावर से
स्वपन हुआ साकार
फिर से चाँद उगा आँगन में
मन में लिए उमंग



पिताजी का अच्छा काम
पिताजी एक अच्छा काम कर गए
क़ि बिना देश का भ्रमण किए ही मर गए

जिस गाँव में पैदा हुए
उसी में जिए
और सारे अच्छे काम
जैसे :
गाँव में एक बड़ी चौपाल
पशुओं के लिए ताल
चामुंडा और पथवारी का thda
पीर का ठान
गाँव के बाहर धर्मशाला
लड़कियों क़ि पाठशाला
इतने सारे काम
बिना चंदे के कर गए

उनकी अमरता के लिए
इतने काम काफ़ी हैं
आज भी गाँव वाले
किसी न किसी रूप में
उनका नाम लेते हैं
जिन्दगी में अच्छा काम
एक ही काफ़ी है
बशर्ते आपने उसे
बिना चंदे के अंजाम दिया हो
और सारा जीवन
बिना चंदे के जिया हो
क्या ऐसा नहीं हो सकता
क़ि हम बिना चंदे के कोई अच्छा काम कर पायें
और बिना किसी चिंता के
चिता पर चढ़ पायें
चंदा मांगना तो बुरा नहीं
बुरा है चंदे से चुंगी काटना
और आंये बांये कर यह बताना
क़ि चन्दा कम पड़ गया
इसी लिए वह काम पिचाद गया
अच्छा हुआ पिताजी
आप समय से मर गए
और बिनना चंदे का दाग लिए
चिता पर चढ़ गए

पिताजी एक ........

बार बार कहता हूँ मन के द्वंदों से
पल भर को तो रुको मुझे कुछ कहना है I

मान कहा मन का मैं जीवन भर भटका
समझ नीर कि लहर रेत पर मैं अटका
देख छपे पदचिंह चला पीछे पीछे
लगा चल रहा संग कोई अँखियाँ मीचे
यह मेरी अनुभूति मात्र कल्पना नहीं
थामी जिसने बाहें उसी संग चलना है I

इसने मानी बात न खुद करी मन की
रहा सोचता मैं कब बात करूँ तन की
पलक झपकते ढला सूर्य और शाम हुई
देखें अब यह धुनका कब तक धुनें रुई
अब झीनी सी फटी चदरिया क्या सीना
ओढ़ इसे अब धूप ताप सब सहना है I

तन तो सोया पर मन मीलों मील चला
चखा अमरफल इसने योवन नहीं ढला
अब ऐसे मित्र कहाँ जो देखें बस मन को
है यह जग की रीत सभी देखें तन को
लाख करूँ मैं जतन न छूटे संग इसका
गठबंधन का धर्म इसी संग रहना है I

बी.एल. गौड़


-बी.एल. गौड़
श्री बाला साहिब ठाकरे के akhbaar का नाम है सामना, जिसके वे सवेसवाZ हैं। मुख्य-संपादक, संपादक, मालिक, प्रकाशक यानि की सब कुछ। इसके चलते उन्हें पूरा अधिकार है कि वे इसमें कुछ भी लिख सकते हैं, छाप सकते हैं, वितरित कर सकते हैं-जिसे मुम्बइZ के नागरिक पढ़ते हैं। अगर नहीं पढ़ते तो पढ़वाये जाते हैं।मुम्बइZ निवासियों को पता है कि सामना का आमना करने के लिए किसी में भी ताकत नहीं है। ठाकरे जी के सामने बड़ी हस्तियाँ तो क्या सरकारें भी नतमस्तक रहती हैं। यदि इतिहास पलट कर देखें तो बाला साहिब ने जैसी भी चाही टिप्पणी की, सरकार के विरुद्ध कोइZ भी ब्यान दिया या उनके कायZकताZओं ने कुछ भी किया, चाहे वह रेलवे बोडZ की परीक्षा के केन्द्र का तहस-नहस करना हो या मुम्बइZ से बाहर के अभ्याथिZयों की पिटाइZ या इसी तरह की अन्य गतिविधियाँ। लेकिन कोइZ भी सरकार उनके सामने का आमना नहीं कर पाइZ। एक तरह से कहा जाये तो वे इस क्षेत्र में अजेय बने रहे। और ऐसा होता है, ऐसा ही कुछ जब भी हुआ था जब लालू जी बिहार के मुख्यमंत्राी थे। किसी भी कार के शोरूम को तोड़कर जबरन गाड़ियाँ निकलवा सकते थे और शराफत के तकाजे के तहत इस्तेमाल करने के बाद उन्हें वापस शोरूम के दरवाजे पर छुड़वा सकते थे।अब बाला साहिब ने सामना में लिखकर देश के महानतम् क्रकिेटर को नसीहत के साथ-साथ धमका भी दिया कि ख्+ाबरदार अगर तुमने अपने आपको भारत का नागरिक बताया। पहले कहो कि मैं महाराष्ट्रीयन हूँ और केवल मुम्बइZ का हूँ। हाँ अगर पूछताछ में कोइZ परेशान करने लगे जैसा कि विदेशों में एयरपोटZ पर होता है, वे लोग बार-बार पूछते रहते हैं कन्ट्री? कन्ट्री? आप जब तक कन्ट्री नहीं बतायेंगे तब तक वे आपको न तो अपने देश में घुसने देंगे और न ही अपने देश के एयरपोटZ से उड़ान भरने देंगे। शायद वे बेवकूफी करते हैं, उनका काम चल जाना चाहिए केवल यह कह देने से कि मैं महाराष्ट्रीयन हूँ, बिहारी हूँ, कशमीरी हूँ, हिमाचली हूँ लेकिन नहीं, कहना ही पड़ता है कि मैं भारतीय हूँ।कितनी विवशता बन आती है भारतीय कहने के लिए। बस प्रयि सचिन की यही बात तो बाला साहिब को नागवार गुजरी। उन्हें हरगिज हरगिज नहीं कहना चाहिए था कि मुम्बइZ सब की है, कहना चाहिए था कि मैं सचिन तैंदुलकर, बाला साहिब ठाकरे जी की मुम्बइZ का निवासी हूँ, उनकी रियाया हूँ और भारतीय तो मैं बहुत बाद में हूँ।अब क्या हो? कौन करेगा सामना का आमना? जहाँ पुलिस, प्रशासन, सरकारें फेल हैं, वहाँ बस एक ही तंत्र बचता है और वह है प्रजा का तंत्र। जिसने अपने जलवे की झलक बाला साहिब को विधान सभा में दिखा भी दी है। मराठी मानुष का गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्र में भी बाला साहिब के प्रत्याशी को हार का मुँह देखना पड़ा। बस यही एक तंत्र बचा है, जो बाला साहिब ठाकरे के डर से मुम्बइZ और महाराष्ट्र के निवासियों को निजात दिला सकता है। यदि उनके मन में यह बात, यह विचार बैठ जाये कि वे सब पहले तो भारतवासी हैं, भारत माता के लाल हैं और तत्पश्चात् महाराष्ट्रीयन हैं तो सम्भव है कि वे एक डर के साये से बाहर आकर चैन की साँस ले सकें।याद दिला दे कि वीर सावरकर जैसे वीर महाराष्ट्रीयन जरूर थे पर उन्होंने कालापानी की जेलों में कोल्हू में जुतकर जो तेल निकाला था, वह केवल मुम्बइZ को आजाद कराने के लिये नहीं था बल्कि समस्त भारत का स्वतंत्र कराने के लिए था। यदि उन्होंने यह सब केवल मुम्बइZ के लिये ही किया होता तो हर भारतवासी का सिर श्रद्धा से उनके लिये नहीं झुकता।बाला साहिब जी! जरा सोचिये और कृपा कीजिए हम सब देशवासियों पर। हम सब भारतीयों को मुम्बइZ बहुत प्यारी है, महाराष्ट्र बहुत प्यारा है, आप बहुत प्यारे हैं बशते± की आप केवल क्षेत्रवाद का अलाप छोड़ दें, और अपना दृष्टिकोण बड़ा कर लें। हम आपके शतायू होने की कामना रखते हैं।


जब सूरज के अश्व लगे सजने
स्वपनों के हिमखंड लगे गलने
मैं जब तक सजूँ संवर कर चलूँ
कि सजधज शाम लगी ढलने ।

निशा पहन कर तारों के गहने
विगत समय की बात लगे कहने
सुनते-सुनते नींद चली आई
लेकर आई पंख लगे सपने
पता नहीं कब दिशा ललाम हुई
ले विदा भोर से रात लगी चलने ।

बदल-बदल कर करवट भोर हुई
लगा स्वप्न में वर्षा घोर हुई
बता रही है मन की बेचैनी
कि इसमें रहता चोर कोई
खुले नयन से बन्द भले लगते
हैं आते स्वप्न जहाँ पलने ।

हमराही