विवश

कभी -कभी
सामर्थ्यवान भी
हो जाते हैं विवश
नहीं दिखा पाते अपने रूप
जैसा की अक्सर होता है
सूरज के साथ
कोहरे में फंसकर

किस कदर
हो जाता है हावी
नाचीज कोहरा सूरज पर
नहीं दे पाता वह दर्शन
धरा के वासिओं को
और उसकी नरम धूप
रह जाती है कसमसाकर

ऐसे में आता है वसंत भी
दबे पाँउ
नहीं होते उसके वसन
चटकीले -पीले
न कंचन से
न पीली केसर से
न सरसों के फूले फूलों से
बस करता है रसम अदायगी
जैसे कोई लड़की
लगवाए तन पर मेंहदी
अनचाहे बंधन पर

बी एल गौड़


2 टिप्पणियाँ:

bahut achhi abhvykti

ek behtreen kavita padhne ko mili

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हमराही