तरक्की

आदमी बहुत तरक्की कर गया है
संवेदनहीनता की
सारी हदें पार कर गया है

अब
आदमी का मरना ,या
सरेआम मार दिया जाना
महज एक सनसनीखेज़ ख़बर के अलावा
और कुछ नहीं होता
और इस ख़बर की उमर भी
बुलबुले की उमर के बराबर होती है
वास्तविकता तो ये है
की अब
आदमी दो भागों में विभक्त हो गया है
बाहर से पहले जैसा ज़िंदा
लेकिन
भीतर से मर गया है

आदमी को इंसान बनाने के लिए
जरूरी है एक आसव
जिसे तैआर करने के लिए
जरूरी हैं कुछ जड़ी बूटियाँ
जैसे
गीत ,कविता ,कहानी
दोहा,मुक्तक और ग़ज़ल
सबको बराबर मात्रा में लेकर
मिलाकर उतना hi दर्देजल
घूँट -घूँट कर पीना होगा
तभी बच पायेगा
आदमी का आदमीपन
और इसके लगातार सेवन से
आप देखेंगे
क़ि बदल गया है आदमी
और वह अब
आदमी से इंसान बन गया है

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

हमराही