लम्बी यात्राएं
निरंतर भटकन
और चिंतन मनन के बाद
नगर के बाहर
बस्ती के बीचों -बीच
पीपल के नीचे
खुले मंच पर सजे
शिव लिंग के पास
किसी से बतियाती मिली , जिंदगी

आवाज़ में खनक थी
चेहरे पर गुलाब थे
आंखों में अंजन के साथ -साथ
बहुत सारे ख्वाब थे
मेरी आंखों में प्रश्न्चिनंह देख
उसने पूछा :-
क्या तुम अब भी
यह ज़र्ज़र तन लिए
आंखों में लिए तलाश
मुझे ढूंढ रहे हो ?

मुझे हाँ में सर हिलाते देख
उसने अपनी हँसी बटोरी
और एक कृत्रिम मुस्कान के साथ बोली :-
मुझे दुःख है
कि हमारा -तुम्हारा मिलन
शाश्वत न रह सका
कारण :
तुमेन्ह बुलाते रहे सदैव
जगमगाते राजपथ
और मुझे बुलाती रहीं
बस्ती की पगडंडियाँ
जहाँ बिजली के खम्बे नहीं थे
पर सबके अंतस में
रौशनी के दिए थे
जिन से रोशन थे बस्ती के सभी द्वार
जहाँ आए दिन
किसी न किसी चौखट पर
सजते थे सतिये और वंदनवार
इस सबके अतिरिक्त
यहाँ की हवा में थी
एक आत्मीयता
इसी लिए
तुमसे बिछुड़ने के बाद
यहीं आकर बस गई
तुम्हारी प्रियतमा
तुम्हारी जिंदगी

2 टिप्पणियाँ:

bahut hi umda rachna...

वाह्…………………।गज़ब के भाव्…………………लाजवाब रचना।

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हमराही