मैंने अभी
कल परसों में
कुछ नए दोस्त बनाए हैं
गुलाबों को हटाकर
कुछ केक्टस लगाए हैं
पाई है जब से
हमदर्दी नागफनी की
भुला दी रात की रानी
महक चम्पा -चमेली -गैंदा गुलाब की
नज़र से बची रहे
फलती -फूलती नागफनी
इसी लिए आस -पास
केक्टस स्वरुप
कुछ पहरुए बिठाए हैं

मुझे मालूम है
नहीं चलेगा काम
केवल नागफनी और केक्टस से
काश !जी पाते हम
रिश्तों की खुशबुओं के बिना
जी पाते हम
बिना यादों की चुभन के

हो सकता है किसी दिन
कुछ भूले भटके लोग
मुझ से मिलने आयें
या फिर कुछ बच्चे
दादा -दादी की चाहत लिए
मेरे द्वार आयें
इसी लिए मैंने
घर के बाहर
झर्बेरिओं के कुछ पौधे लगाए हैं

2 टिप्पणियाँ:

वाह वाह्……………एक और बेहतरीन ख्याल्……………शानदार रचना।

प्रिय गौड जी,

अच्छी रचना के लिए बधाई..... अक्सर आपके बोलता सन्नाटा पर आता हूँ...कविताओं का आनन्द लेता हूँ और लौट जाता हूँ...टिप्पणी लिखने से इस लिए बचता रहा क्योंकि आपका टाइपिस्ट वर्तनी की गलतियाँ बहुत अधिक करता है.. इस बार कुछ कम अखरा तो अपनेपन से सच कहने का खतरा मोल ले रहा हूँ...झरबेरियों ..कर देने से यह कविता वर्तनी की भूल से मुक्त हो जाएगी ।

मुझे मालूम है
नहीं चलेगा काम
केवल नागफनी और केक्टस से
काश !जी पाते हम
रिश्तों की खुशबुओं के बिना
जी पाते हम
बिना यादों की चुभन के

बहुत संवेदनशील पंक्तियाँ हैं जो कई दिनों तक फाँस की तरह चुभी रहेंगी । आदर सहित !

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हमराही