सीता का दुःख
उर्मिला के सम्मुख
कुछ भी नहीं

छू लेगी जिसे
संवेदनहीनता
बनेगा काठ

उमर बीती
पर नहीं निकला
बात का डंक

बिना उसके
नदी के उस पार
कुछ भी नहीं

आंधी से डरे
बरगद से पेड़
कोपलें नहीं

2 टिप्पणियाँ:

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क्या बात है..... आनन्द आगया...

छू लेगी जिसे
संवेदनहीनता
बनेगा काठ

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हमराही