चालीस हजार करोड़ की कर चोरी के मामले में नाँक तक ध्ँसे हसनअली को जमानत मिल गई और उसकी बल्ले-बल्ले हो गई। केस कैसा भी हो, मुजरिम जमानत न मिलने तक ही ज्यादा परेशान रहता है। जमानत मिल जाने के बाद तो उसे अपने बचाव के लिये सौ रास्ते दिखाई देने लगते हैं और तरह-तरह के हथकंडे याद आने लगते हैं। फिर न्याय की पटरियों पर उसका मुकदमा मालगाड़ी की रफ़्तार से रेंगने लगता है। इस तरह से फंसा अपराधी अपने केस की लम्बी-लम्बी तारीखें डलवाता है, जी हाँ अधिकांश मुकदमों में यही होता है, तारीखें न्यायालय की ओर से नहीं दी जातीं बल्कि डलवाई जाती हैं। जिसकी जैसी जुगाड़ वैसी उसकी तारीखों की उमर। और इसे कहते हैं केस को डाइल्यूट करवाना।
लेकिन ये बल्ले-बल्ले हसनअली वाली बिरादरी के ही आदमियों की होती है। बिरादरी से मेरा मतलब है स्कैमर्स की बिरादरी, चाहे वे कलमाड़ीस हों, चाहे हसनअलीस। हसनअली के केस में तो पढ़ने को यह भी मिला कि अभियोजन पक्ष का वकील कमजोर पड़ गया, इसलिए हसनअली को तुरन्त जमानत मिल गई वर्ना कोई सवाल ही पैदा नहीं होता कि व्हील चेयर पर बैठकर आये हसनअली साहब को न्यायालय में घुसते ही जमानत मिल जाती। कुछ लोगों का तो कहना यह भी है कि आयोजन पक्ष के वकील को हसनअली के आदमियों ने पानी में घोलकर कमजोरी की दवा पिला दी, जिससे वकील साहब कमजोर पड़ गये और कोई दलील ही नहीं दे पाये कि जमानत से पूर्व हसनअली को रिमाण्ड पर लेकर उस अकूत धन के विषय में पता लगाया जा सके। जिसके विषय में उच्चतम न्यायालय केन्द्र सरकार से भी नाराजगी जता चुका है और प्रश्न भी कर चुका है कि हसनअली को अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया। वैसे हसनअली वाला यह संगीन मामला ऐसा नहीं कि देश के पिछले दशक में अकेला ही हो। इससे पूर्व में कितने ही संतरी, मंत्री, राजा, राजू, बाबू अर्थात् आई.ए.एस., आई.एफ.एस. और इन्हीं सेवाओं के समकक्ष कस्टम, इंकम टैक्स, सेल्स टैक्स आदि-आदि सेवाओं से जुडे़ हुए, लोग सी.बी.आई. के फंदे में आये पर कुछ दिनों के बाद हाथ में से मछली की तरह फिसल गये। मुकदमें आज भी बदस्तूर चल रहे हैं और वे लोग भी चल रहे हैं और उनसे सम्बंधित उनके अपनों की बल्ले-बल्ले बदस्तूर जारी है।
असल में भ्रष्टाचार अब केवल भ्रष्टाचार मात्र नहीं रह गया, बल्कि एक जीवाणु का रूप लेकर कुछ व्यक्तियों के खून में घुल चुका है और साथ ही प्राण-घातक बीमारी का रूप भी धारण कर चुका है। अब इससे कौन-कौन बचा है, छाँटना मुश्किल ही नहीं असम्भव सा हो गया है। इसका कारण बड़ा स्पष्ट है कि हम भ्रष्टाचार में डूबे या आरोपित व्यक्तियों के खिलाफ आज तक एक भी नशीर पेश नहीं कर पाये, जिसके मद्देनशर देश की जनता को यह बता सकें कि देखो भई वह मंत्री या बाबू जिसके यहां इतने टन सोना और इतने करोड़ बेहिसाब नकदी मिली थी, हमने उसकी यह गति की है। आप भी देख लें और आप या आपके भाईबंद शासन में किसी भी संवेदनशील पद पर विराजमान है तो जरा ईमानदारी से काम करें वर्ना आपका भी यही हस्र होगा जो इन श्रीमान का हुआ है।
1947 में देश आजाद हुआ। इस देश में 63 साल से स्वतंत्रता दिवस और बाद में गणतंत्र बनने के बाद गणतंत्र दिवस लगातार मनाया जा रहा है। और एक लम्बे समय से देश को खोखला करने में भ्रष्टाचारी लोग भी जी-जान से लगे हुए हैं।
ऐसा नहीं कि वे पकड़े नहीं जाते, पकड़े भी जाते हैं और 20 से 30 साल तक मुकदमा भी झेलते हैं और फिर बाइज्जत बरी होकर आम नागरिक की तरह अपना शेष जीवन मौज के साथ बिताते हैं।
इस सबका इतना घातक परिणाम जनमानस पर हुआ है कि उसके दिमाग से ‘डर’ नाम का शब्द गायब हो गया है, उसकी धारणा यहाँ तक बन गई है कि कानून उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। कभी-कभी न्याय व्यवस्था भी विवश हो जाती है, जैसे बोफोर्स तोप घोटाले में उसे विवश होकर यह कहना पड़ा कि इस केस को हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर दिया जाये।
64-65 करोड़ के दलाली के इस केस पर न्यायालय के 22 साल और देश के लगभग 250 करोड़ रुपये खर्च हो गये, लेकिन पहाड़ खोदने के बाद मरी हुई चुहिया भी नहीं मिली। और सरकार व न्यायालय ने इस केस को बन्द करके एक अच्छा काम किया। इस शब्द ‘बोफोर्स’ को पढ़ते-पढ़ते आम जन बहुत ऊब गया था, बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार सन् 1984 के सिख विरोधी दंगों की यदा-कदा छपी हुई बात को पढ़कर पाठक अख़बार के उस पृष्ठ को पलटते हुए अगले पृष्ठ पर पहुँच जाता है।
लेकिन यह सब अब आगे चलने वाला नहीं है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने और वर्तमान सरकार ने सरेआम यह ऐलान कर दिया है कि अपराधी चाहे जितने भी रुतबे वाला हो, किसी भी पद पर हो अब बख्शा नहीं जायेगा और इसी के मद्देनशर दिन-प्रतिदिन कलमाड़ी से जुड़े 2जी वाले मामले में जड़ों को बहुत गहराई तक खोदा जा रहा है जहाँ से दबे हुए सत्य को बाहर लाया जायेगा।
निःसंदेह प्रधानमंत्री की घोषणा और ईमानदारी से उठाया हुआ यह कदम सराहनीय है और यह फैसला उम्मीद जगाता है कि अब भविष्य में हसन अली जैसों की नहीं बल्कि आम आदमी की बल्ले-बल्ले होगी।
बी.एल. गौड़

इससे पहले कि मैं यह कविता लिखूं , मैं वीना,वन्दना ,अन्ना ,डोर्थी ,सुशिल बाल्किवाल,मृदुला प्रधान और पटाली के प्रित अपना आभार प्रगट करना चाहूंगा जिनोंहने मेरी कविता "हंसुली जैसा चाँद "पर अपनी टिप्णियाँ भेज कर
मेरा उत्साहवर्धन किया करीब १२ दिन विदेश में रहकर लौटा हूँ इस लिए आप सभी को धनंयवाद देने में भी देरी हुई है
अब आज लिखी कविता देखें :-
सुन मेरे पारद सरीखे मन

न जाने कब मुझे
पगडंडियों ने
ला धकेला राजपथ पर
और तब से अनवरत
मैं चल रहा हूँ अनमना सा
तप्त डाबर कि सड़क पर

अंतर नहीं कोई यहाँ
अंधेरों में उजालों में
यहाँ हर शाम रूमानी
टकरते जाम प्यालों में
कान फोडू बेसुरा संगीत
कोई सुर न कोई ताल
न कोई है अदब कायदा
बस, डगमगाती बेतुकी सी चाल
इससे पहले
कि ये मंज़र मुझे डस ले
ए मेरे छलनी हुए मन लौट चल
तू फिर उनींह pagdandion पर

यहाँ हर आदमी
जो दिखता है नहीं होता
जो होता है नहीं दिखता
और प्यार कि पाकर छुवन वह
मुंह छिपाकर खूब रोता
जब कभी वह सभ्य दिखता है
तो लगता देवता का रूप
कभी वह छाँव ममता कि
कभी वह क्रूरता कि धूप
न जाने क्यों हमें लगता
कि हम यहाँ आकर बने है
टांड पर ताले लगे संदूक
इससे पहले
कि ये ताले खुलें
और अंतस में बसे
सीधे सरल से भाव हों कलुषित
सुन मेरे पारद सरीखे मन
लोट चल तू फिर उसी परिवेश में
तीर नदिया के जहां पर
नृत्य करते मोर
स्वर्ण की चादर लपेटे
धीरे ,बहुत धीरे सरकती भोर
और सारस ताल में डुबकी लगाकर
आ किनारे फडफडाते पर
बी एल गौड़

हमराही