अब खबर आई है कि भारत सरकार की नामी-गिरामी एजेंसी सी.बी.आई . फिर से सक्रिय हो गई है। उसने कहा है कि अब वह 26 साल बाद इतिहास में दर्ज सबसे बड़ी मानव त्रासदी - " भोपाल गैस काण्ड " के सबसे बड़े अपराधी वारेन एंडरसन को वापिस भारत लाकर उस पर अपराधिक मुकदमा चलाना चाहती है। प्रश्न यह उठता है कि उसे अब तक किसने रोका हुआ था। क्या यह संस्था जो सीधे- सीधे भारत सरकार के आधीन है और कहते हैं कि यह स्वतन्त्र रूप से कार्य करती है तो इतनी अच्छी बात उसे पहले क्यों नहीं सूझी। अब इस एजेंसी ने बड़ी मेहनतकर 33 पन्नों में यह बात लिखकर अदालत को बताई है कि एंडरसन को भारत लाना क्यों जरूरी है और यही एकमात्र रास्ता है जिससे 26 साल पहले जो हजारों आदमी एंडरसन की फैक्ट्री यूनियन कार्बाइड के गैस रिसाव से मर गये थे, उनकी आत्माओं को न्याय दिलाया जा सके। वैसे भी हमारे देश की परिपाटी बन चुकी है कि हम दिवंगत आत्माओं को ही न्याय दिलवा पाते हैं। इसका एक लाभ दिवंगतों के बचे-कुचे संबंधियोँ को यह मिलता है कि उनके मन में पल रहा दु:ख कुछ कम हो जाता है। अब श्रीमान एंडरसन 90 वर्ष के हो चुके हैं, जिन्हें भारत की अदालत में पेश करना है। अभी तो सी.बी.आई . ने इस काम को अंजाम देने के लिए तीस हजारी कोर्ट में 33 पन्नों का प्रार्थना -पत्र दिया है कि उसे ऐसा करने की इजाजत दी जाए। भारत में न्याय-प्रक्रयिा की देरी इस बात का सबूत है कि यहाँ आनन-फानन में कोई फैसला नहीं लिया जाता है, यहाँ दूध् का दूध् और पानी का पानी करने के लिये ही समय लगता है। उदाहरण के लिए जब सी.बी.आई . ने आदरणीय सुखराम शर्मा पूर्व संचार मंत्री भारत सरकार के आवास से कई करोड़ रुपये बरामद किये जो उनकी आय से अधिक थे, तो उन पर मुकदमा चला। 13 साल बाद उन्हें हाईकोर्ट ने बुलावा भेजा और जब सजा सुनाने की बात आई तो 80 वर्षीय सुखराम जी ने फरमाया कि अभी तो उनके लिए उच्चतम न्यायालय के दरवाजे खुले हैं। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट जायेंगे और इस तरह वे अपने जीवन के अंतिम वर्ष सुख-सुविधओं के साथ गुजारेंगे। ऐसे अनेक उदाहरण है जिनमें मुकदमों के चलते-चलते बीसियों साल गुजर गये हैं और ये मुकदमे हैं कि कभी थकते नहीं। बोफोर्स तोप वाला मुकदमा तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने तंग आकर उसकी क्लोजर रिपोर्ट का आदेश पास कर दिया। सन् 1984 का सिख कत्लेआम का मुकदमा अभी भी सिसक-सिसक कर चल रहा है। एक आतंकी भाई जिन्हें अफजल गुरु कहते है, उनका तो मुकदमा ही एक नजीर बन गया है जिसकी फ़ाइल में ऐसे पहिये लगे हैं कि वह कही भी किसी भी कारालय में टिक ही नहीं पाती और बिना किसी अल्पविराम के दौड़ती रहती है इधर से उधर और उधर से इधर । भोपाल काण्ड के सबसे बड़े अपराधी 90 साल के एंडरसन भारत लाये जायेंगे और यह तो निश्चित है कि भारत आते-आते वे 91-92 साल के तो हो ही जायेंगे। फिर लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उन पर मुकदमा चलेगा। और मेरे विचार में चूंकि वे अमेरीकी नागरिक हैं तो जमानत मिलने में विलम्ब नहीं होगा। और एक आशंका यह भी है कि अमेरिका सीधे- सीधे " नो " कह दे तो फिर इस पर बड़ी-बड़ी टिप्पणियां आयेंगी और बरसों तक इस पर लफ्फाजी होगी। क्या यह मुहिम उन हजारों मृत व्यक्तियों के परिजनों को रेगिस्तान में जलाशय दिखाने जैसी नहीं है? या फिर यह मुहिम इसलिए है कि इतने बड़े नर-संहार में भारत सरकार अब तक मौन साधे रही, जिस कारण जनता में सरकार के प्रति एक उदासीनता की भावना घर कर गई । शायद सरकार के इस कदम से जमी बर्फ कुछ पिघले।

बी.एल. गौड़

1 टिप्पणियाँ:

भोपाल गैस पीड़ितों की त्रासदी को वे ही समझ सकते हैं जो भुक्तभोगी हैं . सरकार द्वारा दी जा रही मुआवजा राशि नाकाफी है और सही हाथों में पहुँच रही है इसमें भी संदेह है. अच्छी पोस्ट

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