24 नवम्बर की घटना की चर्चा देश के कोने-कोने में है। भला हो मीडिया का विशेष कर इलैक्ट्रानिक मीडिया का कि इस प्रकार की किसी भी घटना या दुर्घटना के घटित होने पर टूट पड़ता है उस खबर पर और मिलता है मुद्दा हर चैनल को अपनी टी.आर.पी. बढाने का । कल मैं इस घटना को घटित होते हुए टी.वी. पर देख रहा था। बार-बार लगातार एक ही दृश्य कि किस प्रकार हरविंदर सिंह ने श्री शरद पवार को थप्पड़ मारा और थप्पड़ भी इतनी ताकत से कि बेचारे शरद पवार टेढ़े होकर दीवार से जा लगे। कुछ मिनट तक लगातार एक ही दृश्य को बार बार देखाते हुए देख कर मैं बोर हो गया और चैनल बदल दिया, लेकिन वहाँ भी यही दृश्य और फिर लगातार हर न्यूज चैनल पर वही दृश्य।

इस घटना से कई बातें उभर कर आती हैं। आयोजनकर्ताओं की सबसे बड़ी गलती है कि महगाई के इस दौर में जब देश का आमजन दो जून की रोटी के लिए जूझ रहा है और खाद्दानों की कीमतें आसमान छू रही हैं, आप ऐसे दौर में मुख्य अतिथि के रूप में बुला रहे हैं ऐसे मंत्री को जिनके कन्धें पर पहले ही देश की खाद व्यवस्था का इतना बोझ है कि उनके दोनों कंधे इससे झुके हुए हैं. वे अपनी समझ से महंगाइ को नीचा दिखाने के लिए उससे हाथापाइ में लगे हैं। अरे किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाते जो कम से कम तुम्हें इस बढ़ती हुइ महंगाइ के कारण बताता और खाद्दानों की कीमतों के ऊँचे जाते हुए ग्राफ के विषय में बतलाता। जब शरद पवार जी को इस सबके विषय में कुछ पता ही नहीं है तो वे बतलाते भी क्या? उन्होंने तो साफ कहा कि आज संसद में विपक्ष जो महंगाइ पर चीख पुकार मचा रहा है, उसका कारण कम से कम उन्हें नहीं मालूम। न मीडिया यह सवाल उनसे पूछता और न वे नकारात्मक उत्तर देते और न ही सिरफिरा हरविंदर सिंह यह कहते हुए कि "सब पता है" उन्हें थप्पड़ मारता। अरे भले मानस तुझे उनकी उमर का तो ख्याल करना चाहिए था। दरअसल थप्पड़ की भी कई डिग्रियां होती हैं जैसे:चाँटा, झापड़ और थप्पड़। इनमें मुझे लगता है कि शायद थप्पड़ ही सबसे धमाकेदार और ताकतवर होता है।

इस काण्ड में दूसरी कमी है दिल्ली पुलिस की जब उसे पता है कि हरविंदर सिंह एक पेशेवर थप्पड़ बाज है तो श्री पवार को जो देश के एक कद्दावर नेता हैं। कुछ अधिक सुरक्षा देनी चाहिए थी और एक आश्चर्य की बात और भी है कि जुम्मा-जुम्मा आठ दिन हुए हैं जब इसी व्यक्ति ने आदरणीय सुखराम जी पर भी हमला किया था। तब सरकार ने क्यों नहीं सोचा कि उसे हरविंदर सिंह जैसे युवकों से जो देश की महंगाइ, भ्रष्टाचार और नेताओं से खार खाये बैठे हैं। थोड़ा होशियार रहे और नेताओं की सुरक्षा और बढ़ाये ताकि वे सरे राह व सरेआम इस तरह से पिटने से बचें।

वैसे इस तरह से रोष प्रकट करने के मामले पहले भी प्रकाश में आये हैं, जब लोगों ने नेताओं पर चप्पल-जूते भी फैंके हैं, थूकना, टमाटार या अण्डे फैंकना भी कइ मामलों में हुआ है। और ये नहीं कि ऐसा केवल हमारे ही देश में होता है, विदेशों में भी कभी-कभार जूता फिन्काई होती है।

पर ऐसी घटनाओं के पीछे राज क्या है, क्यों होता है, ऐसा इस पर शायद ही कोइ सोचता हो, शायद स्वयं अपमानित हुआ नेता भी नहीं। क्योंकि इस तरह का उसका सार्वजनिक अपमान, एक राजनीतिक बहस में तबदील होकर रह जाता है। संसद में बहस होती है। गरमा -गरम बहस के बाद सब उठकर अपने-अपने घर चले जाते हैं, फिर दोनों पक्ष नये-नये मुद्दों की खोज में लग जाते हैं। आगामी सत्र में कैसे एक-दूसरे को मात देनी है, यह प्रश्न महंगाइ के पंश्न के ऊपर हावी हो जाता है और समस्याएं अपनी जगह उफनते हुए दूध् के झाग की तरह नीचे बैठ जाती हैं।

हमारे अपने विचार में तो ऐसे युवकों को सजा देने से पहले सार्वजनिक मंचों पर बुला कर पूरे तौर पर सुनना चाहिए। आखिर इतनी बड़ी भीड़ में उन्होंने ही ऐसा साहसिक या दुस्साहसिक कदम क्यों उठाया और सारी भीड़ क्यों शांत रही। खोज होनी चाहिए कि क्या हरविंदर सिंह जैसे लोग सिरफिरे हैं? किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं? या किसी भीड़ का प्रतिनिधितिव करते हैं और एक खुली बहस के बाद ही उनकी सजा मुकरर करनी चाहिए।

इस प्रकार खुले आम थप्पड़ मार कर किसी का अपमान करना और वह भी एक नेता का सरासर गलत है, निन्दनीय है। अपमानित करने के या किसी को उसके कर्त्तव्य की याद दिलाने के और भी तरीके हैं।

देश की ज्वलन्त समस्याओं पर विपक्ष कभी एक मत नहीं होता। सभी पार्टियाँ एक ही समस्या को अपने-अपने दृष्टिकोण से उठाती है, समस्या एक ही होती है पर वे कभी एक मत नहीं होते।

इसी के चलते मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं :µ

तुमसे अधिक दोषी हैं तुम्हारे विरोधी
जो तुम्हारे घोर विरोधी होकर भी
परस्पर घोरतम विरोधी हैं
काश! वे सब एक हो पाते
तो हमारा वोट डालना
सार्थक हो जाता
हमारा गुल्लू भी मदरसे जा पाता
और रोटी भी शायद
दोनों जून मिल पाती
गुल्लू की माँ प्यार से बतियाती
. . . . . . . . . . . . . . . .
. . . . . . . . . . . . . . . .
मेरा सारा आक्रोश
विरोधियों के प्रति है
यह तभी धुलेगा
जब उनके हाथों में
एक रंग का झण्डा होगा ...

अपनी एक कविता "वोटर के द्वार नेता" से।

बी.एल.गौड़

3 टिप्पणियाँ:

आपका लेखन ना केवल एक बात कहता है बल्कि एक दृष्टिकोण देता है.... व्यंग्य और चिंतन का पुट लिए... कविता से अंत होता आलेख चिंतन को प्रेरित कर रहा है...

सार्थक चिन्तन। शुभकामनायें।

सटीक अभिव्यक्ति .एकदम खरी -खरी बात .बधाई .

एक टिप्पणी भेजें

हमराही