तू मुझे भी साथ ले चल
तू मुझे भी साथ ले चल
झूमकर बहते पवन
है मुझे चूना उसे जो
जा बसा नीले गगन
देकर दिलाशा वह गया
मैं लौटकर फिर आऊँगा
ताप हर लेगा तुम्हरा
पुष्प जो मैं लाऊँगा
टाक नित सूनी डगर को
थक चुके हैं अब नयन
गर न पाया वह गगन तो
पार सागर के चलेंगे
तीव्र गति का यान लेकर
पार हर दूरी करेंगे
वह कहीं भी तो मिलेगा
घाट-घाटी या घने वन
ये न जाने कौन मन की
प्यास को देता बढ़ावा
और इस ढलती उमर में
फूटता सुधिओं लावा
कौन कब आया कहाँ पर
पहन कर पीले वसन
पा न पाये हम उसे तो
खा रहे गंगा कसम
मान कर यह झूंठ था सब
तोड़ लेंगे हम भरम
सोच कर मित्थ्या जगत ये
हम करेंगे वन गमन
बी एल गौड़
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
1 टिप्पणियाँ:
waah.........gazab ki rachna hai........badhayi.
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