हर दिवस के अंत पर
सज संवरकर
आ खड़ी होती है सम्मुख शाम
पूछने को प्रशन
क्या किया दिनभर
क्या हुए पूरे अधूरे काम ?
सोचता भर हूँ
कह नहीं पाता
क्योंकि मेरा उत्तर भी
अधूरा उसके प्रश्न सा
मुझी से पूछता है प्रश्न
क्या कभी पूरे हुए हैं
इस जगत में आदमी के काम ?
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर
नहीं है पास मेरे
बल्कि उलटा प्रश्न है
बस तनिक इतना बता दो
क्या कभी
उसको लिवाकर ला सकोगी
नाम जिसके आज तक लिखता रहा मैं
प्रीत के पैगाम
ए सूर्य ! तुम तुमसे प्रार्थना है
खींच करके रज्जुओं को
अश्व अपने थाम लो
न जाओ आज अस्ताचल
तनिक विश्राम लो
क्यों लग रहा ऐसा मुझे
कि आज वह आने को है
चाहता हूँ
मैं तुम्हारी इस बिखरती लालिमा से
एक चुटकी भर चुरा लूं
और भर दूं मांग उसकी
नाम जिसके कर चुका मैं
उम्र कि हर शाम
बी एल गौड़ .
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
10 टिप्पणियाँ:
बहुत खूबसूरती से मन के एहसास लिखे हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह! बहुत ही मनभावन रचना है……………प्रीत के रंगो से सराबोर्।
शानदार और सुन्दर एहसास
सुन्दर रचना!
इस प्रश्न का उत्तर किसी के भी पास नहीं है!
एक चुटकी भर चुरा लूं
और भर दूं मांग उसकी
नाम जिसके कर चुका मैं
उम्र कि हर शाम
बहुत सुन्दर एक उमीद जीने के लिये। बधाई इस रचना के लिये।
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
बहुत बहुत बधाई |आज कई चर्चा में शामिल करने के लिए आभार |
आशा
आह ...प्रेम रस पगी अद्वितीय अभिव्यक्ति...
मुग्धकारी अतिसुन्दर रचना...
इस अनुनय पर तो सूर्य देव भी रीझ जाएँ...
क्या किया दिनभर
क्या हुए पूरे अधूरे काम ?
इस प्रश्न का उत्तर किसी के भी पास नहीं है, अतिसुन्दर रचना.
सुन्दर रचना!!!
bahut badiya...
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
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