ए हिमखंड गालो मत ऐसे
ए हिम खंड गालो मत ऐसे
जैसे मेरी उमर गली
मैं रोया तो क्या पाया
तुम रोये तो डगर मिली
मुझ में तुम में अंतर केवल
मैं भी कोमल तुम भी कोमल
जन्मे तुम सीधे अम्बर से
मैं भी किसी प्रणय का प्रतिफल
रूप हमारा भले अलग है
पर दोनों का उदगम जल है
तुम को भ्रम तुम अमर रहोगे
पर जीवन तो पल दो पल है
पा लोगे तुम बहकर मंजिल
मैं भटकूंगा गली गली
पाकर ताप लगे तुम बहने
पाकर दर्द लगा मैं लिखने
तुम ने बहकर पाई नदिया
मैंने लिख कर पाए सपने
तुम सोते चादर फैलाकर
क्या जानो तुम दुःख धरती के
तुम ने सोकर उमर बिताई
मैंने दुःख बांटे लिख करके
पीछे मुड जब देखा मैंने
पाई अपनी उमर ढली
बी एल गौड़
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
1 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी रचना ... बहतरीन शब्दों में आपने तुलना की है अपनी और हिमखंडों की ... आभार आपका
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