ऐसी मान्यता है कि नर बया घोसला बुनना शुरू करता है और आधा निर्माण हो जाने पर घोंसले के बाहर न्रत्त्य
करता है जब तक कि कोई मादा बया उसके न्रत्त्य पर रीझ कर उसके पास न आ जाए , फिर दोनों मिलकर
घर ( नीड़ ) पूरा करते हैं , उसके बाद बया उसमें अपने बच्चों को जनम देती है , इसे लेकर एक रचना :-
नीड़ का निर्माण आधा
कर नीड़ का निर्माण आधा
नर बया ने मौन साधा
न्रत्त्य कर कर थक गया तन
पर न आई एक राधा
उड़ गया फिर दुसरे वन
इक नया संकल्प लेकर
अब बुनूँगा नीड़ फिर से
स्वयं का सर्वस्व देकर
एक शंका घेरती मन
हो चुका इक बार ऐसा
बांसुरी कि तान पर भी
राधिका ने मौन साधा
पर न पीछे अब हटूंगा
नीड़ को आकार दूंगा
और अंतिम सांस तक मैं
आस उसकी में रहूँगा
है प्रणय में शक्ति कितनी
यह समय बतलायेगा
जब न्रत्त्य में लूंगा समाधि
ढूँढती आएगी राधा
बी एल गौड़
9
जून
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
3 टिप्पणियाँ:
प्रेम वास्तव में समर्पण चाहता है... बिना समर्पण और त्याग के प्रेम कहाँ... बया के विम्ब के माध्यम से सुदर कविता बुना है आपने.. बहुत बढ़िया !
वाह गज़ब का लिखा है यही तो प्रेम की दिव्यता है……………अति उत्तम रचना।
लाज़वाब अभिव्यक्ति!
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