कहते हैं
कि इतिहास स्वयं को दोहराता है
पर मेरा मानना है
कि यह एक मिथ है
यदि यह सच होता
तो कभी तो आती आवाज़
अर्गला बजने की
लाख कोशिशें कीं
कि लौटे वह प्यास
है जो किसी रेगिस्तान में खोई
और बची कुची
जगतार ने मेरे अंतस में बोई
जन्मे हैं जिससे स्वर्ण मृग
जो मारते हैं कुलांचें
रेतीले टीलों के आर -पार
में भी बहुत दौड़ा हूँ उनके पीछे
तलाश में जलाशय की
यदि सच -मुच
अतीत के लौटने की प्रथा होती
तो आज पुनः लबालब होते
मेरे असमय सूखे ताल
और तैरती होतीं लहरों पर
नाव कागज़ की
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
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