काश कभी लौटे वह संध्या
काश कभी लौटे वह बचपन
लौटें आँख मिचौली के दिन
काश कभी लौटे वह यौवन
लौटें रुन्ठा-रून्ठी के दिन
कापी में से प्रष्ट फाड़कर
काश बने छोटी सी कश्ती
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
काश कभी लौटे वह संध्या
काश कभी लौटे वह बचपन
लौटें आँख मिचौली के दिन
काश कभी लौटे वह यौवन
लौटें रुन्ठा-रून्ठी के दिन
कापी में से प्रष्ट फाड़कर
काश बने छोटी सी कश्ती
Copyright 2009 - बोलता सन्नाटा
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2 टिप्पणियाँ:
bahut khub likha hai.
Bahut Barhia...bachpan mein le jaane ke liye dhanyawad...
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