सीता का दुःख
उर्मिला के सम्मुख
कुछ भी नहीं
छू लेगी जिसे
संवेदनहीनता
बनेगा काठ
उमर बीती
पर नहीं निकला
बात का डंक
बिना उसके
नदी के उस पार
कुछ भी नहीं
आंधी से डरे
बरगद से पेड़
कोपलें नहीं
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
सीता का दुःख
उर्मिला के सम्मुख
कुछ भी नहीं
छू लेगी जिसे
संवेदनहीनता
बनेगा काठ
उमर बीती
पर नहीं निकला
बात का डंक
बिना उसके
नदी के उस पार
कुछ भी नहीं
आंधी से डरे
बरगद से पेड़
कोपलें नहीं
Copyright 2009 - बोलता सन्नाटा
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2 टिप्पणियाँ:
क्या बात है..... आनन्द आगया...
छू लेगी जिसे
संवेदनहीनता
बनेगा काठ
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