एक दिन यूँ ही
बेटी की किताब खोली
तो बीच पन्नों के मिली
चिपकी हुई एक तितली
न जाने क्यों
उस दिन
मन बहुत उदास रहा
बेटी समझ गई
मेरी उदासी का कारण
"बुरी बात है
किसी को मारकर
यों कैद रखना "
यादों की बात और है
हालांकि वे भी
मरी हुई तितलियों की तरह
चिपकी रहतीं हैं सदां
मन की किताब के पन्नों के बीच
पर एक अंतर है :-
लाख जतन करने पर भी
नहीं जीवित हो पातीं
किताब के पन्नों के बीच
चिपकी हुईं तितलियाँ
जबकि यादें
बिना किसी प्रयास के
मरकर भी जीवित रहतीं हैं
उडती हुई तितलिओं की तरह
प्रस्तुतकर्ता
बी. एल. गौड़
2 टिप्पणियाँ:
वाह्…………बेहद सुन्दर चिन्तन्…………………सच यादें मर मर कर ज़िन्दा होती जाती हैं।
शानदार कविता...इन दिनों बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप...
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