कहते हैं
कि इतिहास स्वयं को दोहराता है
पर मेरा मानना है
कि यह एक मिथ है
यदि यह सच होता
तो कभी तो आती आवाज़
अर्गला बजने की

लाख कोशिशें कीं
कि लौटे वह प्यास
है जो किसी रेगिस्तान में खोई
और बची कुची
जगतार ने मेरे अंतस में बोई
जन्मे हैं जिससे स्वर्ण मृग
जो मारते हैं कुलांचें
रेतीले टीलों के आर -पार
में भी बहुत दौड़ा हूँ उनके पीछे
तलाश में जलाशय की

यदि सच -मुच
अतीत के लौटने की प्रथा होती
तो आज पुनः लबालब होते
मेरे असमय सूखे ताल
और तैरती होतीं लहरों पर
नाव कागज़ की

लम्बी यात्राएं
निरंतर भटकन
और चिंतन मनन के बाद
नगर के बाहर
बस्ती के बीचों -बीच
पीपल के नीचे
खुले मंच पर सजे
शिव लिंग के पास
किसी से बतियाती मिली , जिंदगी

आवाज़ में खनक थी
चेहरे पर गुलाब थे
आंखों में अंजन के साथ -साथ
बहुत सारे ख्वाब थे
मेरी आंखों में प्रश्न्चिनंह देख
उसने पूछा :-
क्या तुम अब भी
यह ज़र्ज़र तन लिए
आंखों में लिए तलाश
मुझे ढूंढ रहे हो ?

मुझे हाँ में सर हिलाते देख
उसने अपनी हँसी बटोरी
और एक कृत्रिम मुस्कान के साथ बोली :-
मुझे दुःख है
कि हमारा -तुम्हारा मिलन
शाश्वत न रह सका
कारण :
तुमेन्ह बुलाते रहे सदैव
जगमगाते राजपथ
और मुझे बुलाती रहीं
बस्ती की पगडंडियाँ
जहाँ बिजली के खम्बे नहीं थे
पर सबके अंतस में
रौशनी के दिए थे
जिन से रोशन थे बस्ती के सभी द्वार
जहाँ आए दिन
किसी न किसी चौखट पर
सजते थे सतिये और वंदनवार
इस सबके अतिरिक्त
यहाँ की हवा में थी
एक आत्मीयता
इसी लिए
तुमसे बिछुड़ने के बाद
यहीं आकर बस गई
तुम्हारी प्रियतमा
तुम्हारी जिंदगी

जाने ऐसा क्यों लगता है
सूरज अब धीरे चलता है
संध्या के पंजों से घायल
कुछ कुछ लंगडा कर चलता है

कनक रंग से रंगी चूनरी
अपने हाथ उढ़ा धरती को
फिर धीरे से गोता खाकर
चल देता अनजान नगर को
हम ही जानें जाने कैसे
तिल तिल करके तम गलता है

गई रात तक हम गिनते हैं
दिन के छूटे काम अधूरे
सपनों में भी ताना बुनते
कल सब कैसे होंगे पूरे
हम चिंता में यह मस्ती में
यही आचरण तो खलता है

टूटे फूटे स्वप्नों के संग
तंद्रा - निद्रा के बंधन में
ओढ़ चदरिया सोते जगते
लेकर कई प्रशन उलझन में
इसकी फिर से वही कहानी
राह पुरानी पर चलता है

हमराही