याद नहीं अब
जीवन में मैं
हारा कब-कब
है बस इतना याद
कि हारा जब-जब
रण के बीच नहीं
हारा, घर के भीतर।

मन के सब अस्त्र-शस्त्र
खडग-तेग-तलवार
बाहर तो खूब चले
पर रहे मोथारे घर -भीतर
रहे देखते अपलक
म्यानो से उचक-उचक
होता अत्याचार
अपनों द्वारा अपनों पर।

कटते हुए पेड़ ने
कहा कुल्हाड़ी से
जब वह
काट रही थी उसको जड़ से
" अरी निगोड़ी सुन
तनिक सांस तो ले
इक बात मेरी सुन ले
क्या तू मुझे काट पाती पगली
यदि होता मेरा हाथ
न तेरे सर पर"।

बी.एल.गौड़

हमराही