ए हिमखंड गालो मत ऐसे

ए हिम खंड गालो मत ऐसे
जैसे मेरी उमर गली
मैं रोया तो क्या पाया
तुम रोये तो डगर मिली

मुझ में तुम में अंतर केवल
मैं भी कोमल तुम भी कोमल
जन्मे तुम सीधे अम्बर से
मैं भी किसी प्रणय का प्रतिफल
रूप हमारा भले अलग है
पर दोनों का उदगम जल है
तुम को भ्रम तुम अमर रहोगे
पर जीवन तो पल दो पल है
पा लोगे तुम बहकर मंजिल
मैं भटकूंगा गली गली

पाकर ताप लगे तुम बहने
पाकर दर्द लगा मैं लिखने
तुम ने बहकर पाई नदिया
मैंने लिख कर पाए सपने
तुम सोते चादर फैलाकर
क्या जानो तुम दुःख धरती के
तुम ने सोकर उमर बिताई
मैंने दुःख बांटे लिख करके
पीछे मुड जब देखा मैंने
पाई अपनी उमर ढली

बी एल गौड़

ओस के कण देख कर

पंखुरी की देह पर
ओस के कण देख कर
एक पल को यों लगा
ज्यों किसी ने बीनकर आंसू किसी के
ला बिखेरे फूल पर

कुछ देर में आकर यहाँ
दिनमान छू लेगा इनेंह
ये भाप बन उड़ जायेंगे
रूप धरकर बादलों का
फिर गगन में छाएंगे
आ झुकेंगे ये धरा के भाल पर
या सिमटकर सात रंग में
जा तनेंगे पाहनों के ढाल पर
या बनेंगे बूँद फिर से
जा गिरेंगे फूल पर या शूल पर

मुझ से कहा था फूल ने
तू ध्यान दे इस बातपर
हैं जिंदगी के चार दिन
अंधियार की मत बात कर
तू झूमकर इसको बिता
तू जिंदगी के गीत गा
तू सौ बरस के साधनों की
भूल कर मत भूल कर

जब कदाचिन मा फलेषु
कर्म का औचित्य क्या
इस पार तो सब सत्य है
उस पार का अस्तित्त्व क्या
तू चोट कर भरपूर ऐसी
रूढ़ियों के मूल पर

बी एल गौड़

एक नया प्रयोग :- कविता "क्या कुछ ऐसा हो सकता है ?

बीते दिन तो लौट के आयें
पर वे भोगे दर्द न लायें

बीते दिन जब लौट के आयें
यादों की गठरी ले आयें
मार चौकड़ी आँगन बैठें
बीती बातों को दोहरायें
फिर कुछ रात पुरानी आयें
रंग बिरंगे सपने लायें
आयें फिर कुछ भोर सुहानी
संग में इन्द्रधनुष ले आयें
क्या कुछ ऐसा हो सकता है ?

बीते मौसम जब जब आयें
गुजरे पल कुछ साथ में लायें
वे पल जिनमें बसी जिंदगी
सब के सब हमको दे जाएँ
यदि ऐसा संभव हो जाए
तो कुछ और बरस हम जीलें
यादों की मदिरा का प्याला
एक घूँट में सारा पीलें
यह जग फिर हम कभी न छोड़ें
चाहे परियां लेने आयें
क्या कुछ ऐसा हो सकता है ?
बी एल गौड़

हमराही