ओस के कण देख कर

पंखुरी की देह पर
ओस के कण देख कर
एक पल को यों लगा
ज्यों किसी ने बीनकर आंसू किसी के
ला बिखेरे फूल पर

कुछ देर में आकर यहाँ
दिनमान छू लेगा इनेंह
ये भाप बन उड़ जायेंगे
रूप धरकर बादलों का
फिर गगन में छाएंगे
आ झुकेंगे ये धरा के भाल पर
या सिमटकर सात रंग में
जा तनेंगे पाहनों के ढाल पर
या बनेंगे बूँद फिर से
जा गिरेंगे फूल पर या शूल पर

मुझ से कहा था फूल ने
तू ध्यान दे इस बातपर
हैं जिंदगी के चार दिन
अंधियार की मत बात कर
तू झूमकर इसको बिता
तू जिंदगी के गीत गा
तू सौ बरस के साधनों की
भूल कर मत भूल कर

जब कदाचिन मा फलेषु
कर्म का औचित्य क्या
इस पार तो सब सत्य है
उस पार का अस्तित्त्व क्या
तू चोट कर भरपूर ऐसी
रूढ़ियों के मूल पर

बी एल गौड़

1 टिप्पणियाँ:

पंखुरी की देह पर
ओस के कण देख कर
एक पल को यों लगा
ज्यों किसी ने बीनकर आंसू किसी के
ला बिखेरे फूल पर

बहुत ही सुन्दर और भावभीनी प्रस्तुति दिल को छू गयी।

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हमराही