बेचारे गडकरी ही क्या दोनों पार्टियों भा.जा.पा. और काँग्रेस का हर बड़ा नेता बेहद गलत बात कह कर फिर सफाई देता फिरता है कि उसका मतलब तो यह था ही नहीं जो जनता या मीडिया समझ रहा है अर्थात ये दोनो वर्ग अब्बल दर्जे के मूर्ख हैं। नेता जी का जो मतलब होता है उसे नहीं समझते और बेमतलब अपनी समझ का इस्तेमाल  करते हैं और बे वजह नेता की ऐसी की तैसी करने में जुट जाते हैं।
गडकरी जी बेचारे अकेले ऐसे नेता नहीं है जिनकी जुबान ने फिसलकर वे वाक्य कहे हैं जिनके द्वारा सन्त विवेकानन्द की तुलना दाउद से की है। इससे पहले कानपुर की एक काव्यगोष्टी में देश के धुरन्धर कोयला मन्त्री ने मंच से कहा था कि कुछ वर्षों के बाद औरत पुरानी हो जाती है। ऐसे लोग उस रौ में भूल जाते हैं कि उनको जन्म देने वाली भी कोई औरत थी। इसी प्रकार एक और केन्द्रीय मन्त्री संभवतया श्री बेनी प्रसाद वर्मा ने भी कोई अनर्गल टिप्पणी किसी विषय पर की थी। इसी क्रम मे ंआडवानी जी पाकिस्तान जाकर जिन्ना की कबर पर सलाम करते समय कह बैठे थे कि जिन्ना साहब दुनिया के सबसे बड़े सैकुलरवाद के प्रणेता थे। श्री जसवन्त सिंह जी ने भी अपनी एक किताब ऐसे ही किस्सों के साथ लिख मारी। अब चूँकि ये सब बड़े लोग हैं कुछ भी कह सकते हैं, मंच से कुछ भी बोल सकते हैं, कुछ भी लिख सकते हैं और बाद में केवल एक वाक्य से लीपा पोती भी कर सकते हैं कि उनके कहने का मतलब यह नहीं था। 
अभी कुछ दिन पहले हर अखबार में आये दिन छप रहा था कि आज दिल्ली के फलाँ इलाके से कार सवारों ने एक लड़की को उठा लिया, एक औरत को उठा लिया और अपनी हवस का शिकार बना कर किसी सुनसान जगह पर फैंक दिया। तब मैंने एक कविता लिखी थी जिसकी अतिंम पंक्तियाँ थी
‘‘ हर हादसे के बाद
मिलती संात्वना सरकार से
और मिलती इक दिलासा
इस घिनोने काम का
अब शीघ्र ही होगा खुलासा
पर क्या मिलेगा पीडि़ता को न्याय
जहाँ कानून हो लँगड़ा
व्यवस्था एकदम गड़बड़।’’

हमारा  ही तो एक देश है जहाँ सौ प्रतिशत लोकतन्त्र है। इसमें आप कुछ भी बोलो बड़े से बड़ा गबन करो और अपनी डायरी में लिख कर रख लो कि आपका बाल भी बाँका नही होगा। पिछले 65 सालों का इतिहास उठाकर देख लो अगर एक भी दोषी को सजा हुई हो। कानीमोरी, कलमाड़ी या ए.राजा का उदाहरण मत देना। हजारों करोड़ के घोटाले के बाद थोड़े से दिन की नजरबन्दी केवल हलके से कायाकष्ट की परिभाषा में आती है। सजा सुनाते वक्त ‘‘सश्रम कारावास’’ का शब्द इनकी सजाओं के साथ नहीं जुड़ता। फिर जमानत मिलने का मतलब होता है आधा केस खत्म हो जाना।
इस दौरान यदि कोई विहसल बलोअर बीच में आ टपकता है तो उसे ऐसे ढंग से साफ कर दिया जाता है कि उसकी जमात के दूसरे लोग भी सावधान हो जाये और भ्रष्टाचार के विरूद्ध सीटी बजाने से बाज आयें।
लेकिन कहते हैं न कि किसी का भी बीज नाश नही होता। कितने भी सीटी मास्टर मारे जायें लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर कोई न कोई मर्द पैदा हो जाता है। यह सृष्टि का नहीं राजनीति का कभी न समाप्त होने वाला सिलसिला है।
अब गडकरी जी की चर्चा थोड़े दिन अधिक से अधिक तीन दिन चलेगी फिर सब कुछ ऐसे शान्त हो जायेगा जैसे तालाब में किसी ने पत्थर फैंका ही नही और अल्ला अल्ला खैर सल्ला।
आपके मन में भी एक सवाल उठता होगा कि किया क्या जाये ? आये दिन कोई न कोई गलत बयानी कोई न कोई घोटाला सामने आता रहता है। आवाजें उठती हैं कसमसाहट होती है और जनता में शामिल हर जीव अपने भीतर एक उबाल को दबा कर मँहगाई के खिलाफ युद्ध में रत हो जाता है। पैट्रोल-डीजल, रसोई गैस के बढे़ हुअे दामों पर तो वह सीधा सरकार को कोसता है और आटे, दाल, चावल, सब्जियों के लिये वह मन ही मन कुढ़ता है और किसी न किसी को कोसता भी है। पर कभी चील कौओं के कोसने से भला पशु मरते   हैं ?
वह जानता है कुछ भी नही होने वाला। उसे इसी घुटन में होठों को बन्द कर जीना होगा। यही उसकी नियति है। 

हमराही