मेरे ब्लॉग के मित्रो ! नमस्कार
मुझे नहीं मालुम की आप सब लोग मेरे विषय में क्या सोचते होंगे क़ि में एक दिन ब्लॉग पर कुछ लिखता हूँ और फिर एक लम्बे समय के लिए गायब हो जाता हूँ
आदमी एक व्यस्ताएं अनेक , क्षमा चाहता हूँ , वायदा तो नहीं लेकिन कोशिश रहेगी आप सबसे जुड़े रहने की अब बात करते हैं आज की एक कविता की इसे आप www .gaursonstimes.com के साहित्यिक प्रष्ट पर भी देख सकते हैं


मौन

ओ मेरे मनमीत, तुम
कब तक रहोगे मौन ?

यात्रा अंतिम चरण की ओर
धीरे -धीरे
मंद होता जा रहा
ये जिंदगी का शोर
आज भी तुम
शून्य में द्रष्टि जमाये
ढूँढ़ते रहते जिसे, वह कौन ?

बंद होठों पर धरे तुम तर्जनी को
कर रहे मुझको इशारा
चुप रहूँ , मैं कुछ न बोलूं
हर शब्द को सौ बार तोलूं
पर तनिक यह तो बताओ
बज उठेगी अर्गला जब द्वार पर
कौन ? उत्तर में कहेगा कौन ?

चाह इतनी बलवती क्यों
मैं अभी जीवित रहूँ
और मेरी खोज जो अब तक अधूरी
मैं उसे पूरी करूं
जानता हूँ

चाहतें तो पत्तियां हैं पेड़ की

सूखकर गिरतीं धरा पर
कोपलों के रूप में फिर लौट आतीं हैं
पर , बावरी सी सिर पताक्तीं

ये हवाएं कौन सी
जो लौटतीं हर बार जाकर
थपथपाकर द्वार मेरा
रात आधी को जगातीं हैं


खोलता जब द्वार अपना
तब सिवा मैं शून्य के कुछ भी न पाटा
फिर कोई आवाज
बनकर गूँज करती प्रश्न
बस , तनिक इतना बता दो
उम्र बीती राह जिसकी ताकते
वह भाग्यशाली कौन ?

बी . एल . गौड़

3 टिप्पणियाँ:

बेहद गहन अभिव्यक्ति।

सिर्फ़ आपको देखकर और सुनकर आपके व्यक्तित्व का पूरा पता नहीं चलता मगर आपकी कविताओं को पढ़कर आपको समझना आसान हो जाता है । बहुत ही पसंद आई यह कविता ।

बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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