संन्यासी हो गया सवेरा
जोगन पूरी शाम हुई
छली रात झूठे सपनों ने
यूंही उमर तमाम हुई।

मन ने नित्य उज़ाले देखे
अंतरमन की शाला में
कर लें दूर अंधेरे हम भी
सोचा बार—बार मन में
तन ने किये निहोरे मन के
मत बुन जाल व्यर्थ सपनों  के
मयखाने के बाहर तन की
हर कोशिश नाकाम हुई।

मटकी दूध कलारिन लेकर
मयखाने से जब गुज़री
होश में आये पीने वाले
मन में एक कसक उभरी
इक पल उनको लगा कि उसने
आकर मदिरा हाथ छुई
पीने वालों की नज़रों में
बेचारी बदनाम हुई।

यों तो मिलीं हजारों नज़रें
पर न कहीं वह नज़र मिली
चाहा द्वार तुम्हारे पहुंचूं
पर न कहीं वह डगर मिली
तुम कहते याद न हम आये
हम  कहते कब बिसरा पाये
सारी उमर लिखे ख़त इतने
स्याही कलम तमाम हुई।

सोचा अब अंतिम पड़ाव पर
हम भी थोड़ी सी पी लें
मन में सुधियां जाम  हाथ में
अन्त समय जी भर जी लें
जब तक जाम अधर तक आया
साकी तभी संदेशा लाया
ज़ाम आख़िरी पी लो जल्दी
देखो दिशा ​ललाम हुई।

1 टिप्पणियाँ:

बहुत गहन भाव लिए सुंदर गीत

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हमराही