जैसे ही सर्दी की शरूआत हुई तो माननीयों के मन में हूक उठी कि क्यों न हम अपनी सबसे बड़ी पजायत का भी एक सत्र बुला लें। वैसे तो इसके लिये सरकारी सांसदों की अर्थात् सरकार की मंशा ही काफी होती है लेकिन औपचारिकतावश विपक्ष से भी राय कर ली गई। अकसर देखा जाता है कि संसद के पुस्तकालय में अर्थात लगभग निःशुल्क चलती संसद कैंटीन में वे सांसद एक ही मेज पर काफी पीते मिल जाते हैं जो अभी-अभी ब्रेक से पहले एक-दूसरे के गिरेबान तक हाथ बढ़ा रहे थे, आस्तीनें चढ़ा रहे थे और ऐसी कठोर भाषा का प्रयोग कर रहे थे कि यदि लखनऊ के नवाबों का जमाना होता तो आधे नवाब और आधी बेगमें बेहोश हो जातीं।
लखनऊ का एक किस्सा यहाँ बयान करने से विषयान्तर नहीं होगा, वह कुछ इस प्रकार हैः-दिल्ली का एक व्यापारी किसी कार्य से लखनऊ गया। इक्केवाले से मुखातिब हुआ ‘‘ओ इक्केवाले! हजरतगंज चलेगा’’ इक्केवाल ने उसकी बात को कान ही नहीं दिया। फिर दूसरे से उसने इसी टोन में बात की लेकिन उसने भी उससे बात नहीं की। तब उसने टोन बदली ‘‘भय्या इक्केवाले! क्या हजरत गंज तक चलोगे’’ इस पर इक्केवाले ने कहा ‘‘भय्या! पढ़े-लिखे लगते हो, किसी को भी थोड़ी तहज़ीब और प्यार से ही पुकारा करो। हम तो खैर वक्त के मारे हैं चल ही पड़ते लेकिन हमारा घोड़ा हमसे ज्यादा तमीजदार है यह बिलकुल भी तैयार नहीं होता’’ इस जरा सी बात ने उस व्यापारी को थोड़ी तमीज जरूर सिखा दी होगी।
लेकिन आप ऐसी कोई उम्मीद संसद के गलियारे से न पालें। अभी कुछ दिन पहले ही कुछ माननीयों की भाषा के नमूने आपको समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिले होंगे। उदाहरणतयाः-‘‘कुछ दिनों के बाद औरत तो पुरानी हो जाती है’’ (कानपुर में कुछ लेखकों और कवियों के बीच एक मंत्री का संभाषण)। दूसरा जब केजरीवाल के लगातार आरोपों से श्री खुर्शीद आलम आजिज आ गये तो ताव खा गये ‘‘केजरीवाल मेरे संसदीय क्षेत्र में आकर दिखायें, आ तो जायेंगे लेकिन क्या जिन्दा लौट पायेंगे’’।
श्री खुर्शीद आलम के इस संभाषण के बाद सरकार ने सोचा कि आदमी ठीक है इसकी प्रमोशन होनी चाहिये तो उन्हें एक साधारण से मंत्रालय से हटाकर विदेश मंत्री का पद नवाजा गया। यही हाल दूसरे पक्ष का भी है एक सभा में गुजरात के मुख्यमंत्री किसी विशेष व्यक्ति का नाम लिये बिना कह बैठे ‘‘अरे भई उनकी गर्लफ्रैंड तो 50 करोड़ की है’’ बड़ा बायवैला मचा। ऐसे सभी संभाषणों पर प्रतिक्रियायें भी आईं। दो मौकों पर स्त्री संगठनों की ओर से बड़ी भर्तसना की गई। लेकिन जैसा कि सर्वविदित है ऐसी बातों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती। हमारे लोकतंत्र की बस यही एक विशेषता है जो इसे दुनिया के सभी लोकतंत्रों से ऊपर रखे हुअे है। यहां बड़े से बड़े घाटाले हो जायें चाहे वी.आई.पी. गैलरी में कत्ल हो जाये पर कहीं कुछ भी नहीं होता। हाँ मुकद्दमे जरूर चलते हैं कुछ दिनों कुत्ता-घसीटी भी होती है, किसी-किसी को कुछ दिन का कायाकष्ट भी होता है पर अंततः कुछ नहीं होता। सब छूट छाट कर बाहर आ जाते हैं। फिर संसद या विधानसभा की शोभा बढ़ाते हैं, मौज मनाते हैं, फिर से बगुले जैसे वस्त्र धारण कर वोट माँगने निकल पड़ते हैं। बस अपनी यही खराब आदत है कि लिखते-लिखते अपने विषय से भटक जाते हैं। हम आपसे कह रहे थे कि संसद का शरदीय सत्र शुरू हो चुका है और इस लिये भी जरूरी है कि इसमें कुछ ऐसे मुद्दों पर चर्चा होगी जो काफी गर्म हैं जैसे खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश। पक्ष कहता है कि यह देश के लिये लाभदायक है और विपक्ष कहता है कि अति नुकसानदायक है। जब इस पर बहस होगी तो चिनगारियां निकलेंगी और आपको ठंड के मौसम में कुछ गर्मी का अहसास होगा।
इस एफ.डी.आई के चक्कर का या इसमें छिपे भेद का तो पता नहीं लेकिन इतना पता है कि जो दीपावली अभी-अभी बीती है वह पूर्णरूप से मेड इन चाइना थी। क्या लडि़यां, क्या पटाखे और यहां तक कि हमारे गणेश लक्ष्मी भी। तमाम विदेशी समानों से बाजारों को पाट दिया गया था और बेचारे देशी कारीगर और कारखानेदार हाथ पर हाथ धरे दीपावली पर मातम मना रहे थे। यह आलम एफ.डी.आई. के आने से पहले का है आने के बाद तो आलम क्या होगा?
खैर अब आप खुद देखिये और संसद के गलियारे में होती गर्म-गर्म बहस का आनन्द लीजिये।


1 टिप्पणियाँ:

बहुत सुंदर लगी कवि‍ता...

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हमराही