‘पदोन्नति में भी आरक्षण होना चाहिय’ इस मुद्दे को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती बुद्धवार 12 दिसम्बर को राज्यसभा में भड़क गईं। अब यह जो भड़कना है किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी हो सकता है। यह निर्भर करता है कि व्यक्ति विशेष में कितना ज्वलनशील विचार जोर मार रहा है। जब व्यक्ति के अन्तस में विचारों की ज्वाला धधक रही होगी तभी वह अपनी वाणीं के द्वारा भड़क सकता है अन्यथा नहीं।
मायावती जी का भड़कना स्वाभाविक है। जिस वोट बैंक के सहारे वे बार-बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचती हैं उसके हितों का ख्याल रखना और वह भी आवश्यकता से अधिक उनकी अपनी जरूरत है।
वैसे न्यायिक दृष्टि से देखा जाये तो प्राकृतिक न्याय तो यह कहता है कि जब एक बार भर्ती के समय आरक्षण का लाभ किसी व्यक्ति को दे दिया गया तो फिर तो सभी एक ही प्लेटफार्म पर आ गये। उसके बाद तो अपनी-अपनी काबलियत के हिसाब से पदोन्नति होनी चाहिये। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
अभी तक हमें तो यही बात समझ में नहीं आई कि पदोन्नति में आरक्षण में नया क्या है। लगभग 30 साल तक मैं स्वयं ही रेल विभाग में देखता रहा हूँ कि जब भी पदोन्नति की बात आई तो वहाँ पर यह आरक्षण सदैव ही मौजूद था। हमारे साथ के और हमसे जूनियर लोग कोटे के तहत अर्थात पदोन्नति में आरक्षण कोटे के तहत हमसे कहीं आगे निकल कर हमारे ही अधिकारी बन गये, तो यह कोटा तो वहाँ बहुत पहले से मौजूद है फिर इसमें नया क्या है।
खैर छोडि़ये हो सकता है हमारी समझ का ही फेर हो, मुद्दा तो यह है कि मायावती जी राज्यसभा के सभापति श्री आमिद अंसारी पर भड़क गईं और जोश में आकर वो अपने सभी सांसदों के साथ वैल में पहुँच गईं। उनकी भड़क से जो चिंगारियाँ निकलीं उनसे बेचारे सभापति जी असहज हो गये बल्कि यों कहिये कि आहत हो गये और दुखी होकर अपने कक्ष में चले गये बिलकुल उसी प्रकार जिस प्रकार केकई अपने कोप भवन में चली गईं थीं। अन्तर केवल इतना था कि केकई रूंठ कर गईं थीं और सभापति जी दुखी होकर।
उसके बाद उनका दुख बाँटने के लिये कई सांसद उनके कक्ष में गये और इस दुखद घटना पर अफसोस जताया। मायावती जी की यह भड़कने वाली बात राज्यसभा की कार्यवाही में से बाहर निकाल दी गई। प्रधानमंत्री जी ने अपना संदेश भेजकर सभापति जी के घायल मन पर मरहम लगाया।
सुनते हैं कि बाद में मायावती जी कुछ नरम पड़ गईं जिससे सभापति जी को बड़ी राहत मिली और वे बड़े खुश हुअे और नार्मल होकर उन्होंने राज्यसभा के स्थगन समय के पश्चात कार्यवाही को फिर से सुचारू रूप से शुरू किया गया।
सुना है इसी बीच श्री मुलायम सिंह भी भड़के और उन्होंने कहा कि इस प्रकार हर बार प्रमोशन में आरक्षण रखने से तो सारी व्यवस्था ही खराब हो जायेगी और हमारे जनाधार का क्या होगा।
वे पूर्व की तरह राज्यसभा से वाक-आउट कर गये। औपचारिकतावश प्रधानमंत्री जी ने उन्हें मनाने के लिये अपने कई दूत भेजे। लेकिन परिणाम शून्य ही रहा अर्थात् वे वाक-आउट के बाद वाक-इन नहीं हुअे। सरकार को मौका मिला जाँचने का कि भारी कौन है।
तो मायावती जी की भड़क ही भारी निकली और उनकी ही बात मानी गईं। यह बिल  ‘‘हर प्रमोशन में आरक्षण’’ प्रेषित होना बाकी है बल्कि इसे पास हुआ सा ही समझो। जिन दूसरी पार्टियों ने अपना गणित लगा लिया है कि इस बिल से अपने को क्या फायदा होगा वे इस बिल का सपोर्ट कर रही हैं। मुलायम सिंह जी के इस बिल के विरोध में जो तेवर, जो भड़क दृष्टिगोचर हो रही है वह इस कारण है कि इस बिल के कानून बन जाने पर जो भी लाभ होगा वह केवल एस.सी./एस.टी. को होगा पिछड़ों को नहीं और जब पिछड़ों को इससे कोई लाभ नही ंतो मुलायम सिंह जी क्यों मुलायम पड़ें।
अन्त विजय ही तो असली विजय होती है। नतीजा यह निकला कि मायावती जी की भड़क ने मुलायम सिंह जी की भड़क को पटकनी दे दी।
हम सबको इस ‘भड़क’ का शौर्ट टर्म कोर्स अवश्य करना चाहिये आजकल इसी से मुद्दे सुलझते हैं।

श्री बी.एल.गौड़

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